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ज्वलंत मुद्दों पर हों सामूहिक प्रयास

samagrothan
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आमिर खान कन्या भ्रूण हत्या रोकने की बात करें, दहेज जैसी कुप्रथा को लेकर लोगों को जागरूक करें तो यह उनका व्यवसाय है, लेकिन बाबा रामदेव योग शिविर लगायें, दवायें बनवाकर बेंचवायें तो वह समाजसेवा है। यह तो वही बात हुई कि बाबा करें तो सेवा कोई और करे तो व्यवसाय। मैं व्यक्तिगत रूप से बाबा रामदेव का बहुत आदर करते हूं, उन्होंने पतंजलि योग दर्शन को घर-घर तक पहुंचाया। वे कालाधन व भ्रष्टाचार के अलावा दूसरे ज्वलंत मुद्दों पर भी मुखर रहते हैं। उन्होंने यह भी स्थापित करने की कोशिश की धर्म को सत्ता की नकेल होना चाहिए। यह सब बहुत अच्छी बात है, लोकिन जिस प्रकार उन्होंने आमिर खान के शो सत्यमेव जयते को लेकर जिस प्रकार टिप्पणी की, उससे सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि अगर आमिर खान व्यवसाय कर रहे हैं तो बाबा क्या कर रहे हैं? बाबा संत हैं, भारतीय शास्त्रों व दर्शन में उनकी गहरी आस्था है, उसके जानकार भी हैं। महापुरुषों ने कहा कि कोई भी बात कहने से पहले सौ बार सोचो। यह जिम्मेदारी उस व्यक्ति की और भी बढ़ जाती है, जिसके किसी भी कारण से समाज में अनुयायी हों। क्योंकि उसकी एक गलती दूसरे तमाम लोगों को गलती करने के लिए नजीर मिल जाती है। आमिर खान ने सत्यमेव जयते के जिरए उन्हीं मुद्दों को तो उठाया है, जिस पर गायत्री परिवार जैसी धार्मिक संस्थाएं पहले से लोगों को जागरूक करने के प्रयास में हैं। गायत्री परिवार की ओर से बेटी बचाओ अभियान वर्षों से चलाया जा रहै, जिसमें नवदंपती को शादी के वक्त ही आठवें वचन के रूप में कन्या भ्रूण हत्या न कराने का संकल्प कराया जाता है। इस अभियान से जुड़ने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। कई कर्मकांडी पुरोहित तो बाकायदा शादी के वक्त यह संकल्प कराते ही हैं। दहेज को लेकर भी गायत्री परिवार अभियान चला रहा है। सामूहिक विवाह मंडपों में बड़ी संख्या में दहेज रहित शादियां भी हो रही हैं। आमिर खान भी तो उसी आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। कन्या भ्रूण या दहेज ऐसी समस्याएं हैं, जिनको लेकर कहीं भी कुछ भी प्रयास कर रहा तो उसका स्वागत करते हुए प्रोत्साहित ही किया जाना चाहिए। अगर कोई भी व्यक्ति समाज के लिए कुछ अच्छा कर रहा है और उससे आय भी अर्जित कर रहा है तो इसमें बुराई क्या है। यहां तो पैसा कमाने के लोग जाने क्या-क्या गतल रास्ते अपना रहे हैं।
अन्ना और बाबा रामदेव दोनों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए आंदोलन शुरू किया, लेकिन अलग–अलग मंचों से। इससे संदेश यही गया कि इसमें समस्या के समाधान से अधिक जोर श्रेय लेने की होड़ पर है। आंदोलन आगे बढ़ने पर जब राह की कठिनाइयों का अंदाजा हुआ तो दोनों एक मंच पर नजर आने लगे। अन्ना ने कांग्रेस के आरोपों के जवाब में जिस प्रकार अपनी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से दूरी प्रमाणित करने की कोशिश की, वह भी गैरजरूरी ही लगी। आखिर संघ भी तो वही व्यक्ति निर्माण की बात करता है, जिससे राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने वाले लोग तैयार हों। आखिर एक अच्छा कार्य करने वाले व्यक्ति को दूसरे के अच्छे कार्य क्यों नहीं सुहाते।
यह भी बात बहुत ठीक से समझने की है कि सामाजिक समस्याओं का समाधान केवल कानून के जरिए नहीं हो सकता। इसके लिए समाज को ही जागरूक होकर आगे आना होगा। कुरीतियों से छुटकारा दिलाने के लिए कोई किसी भी प्रयास कर रहा हो तो उसकी सराहना ही होनी चाहिए। सबको मिलकर उस प्रयास को प्रोत्साहित करना चाहिए। दहेज जैसी समस्या समाज में लोगों के जीने का मायने तक बदले दे रही है। इसे जड़-मूल से नष्ट करने के लिए युवा वर्ग को आगे आना चाहिए चाहे गायत्री परिवार से जुड़कर या फिर आमिर खान के अभियान से जुड़कर या बाबा रामदेव जैसे संत से जुड़कर, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

लोकेश प्रताप सिंह
9336229554
lokeshgov@gmail.com

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